हिंदी में लिखी हुई मेरी पहली रचना. जैसी भी लगे बता दीजियेगा.
(और यदि आपको लगता है इससे आपका भी कोई संबंध है, तो जान लीजिएगा आपने भी किसी को कुछ कहा होगा.)
वो तुमसे पूछते रहेंगे तुम्हारा दसवीं का रिज़ल्ट,
तुम सच्चाई बता देना कि कितने परसेंट बने हैं.
वो पूछते रहेंगे तुमसे तुम्हारा रोल नंबर,
भई खुद वेरिफाई भी तो करना चाहेंगे कि क्या वाकई उतने मार्क्स आए हैं जितने बताए हैं?
वो मंगवाएंगे तुमसे उनकी ही पसंद की मिठाई,
तुम्हारे रिज़ल्ट की खुशी में.
तुम चुपचाप अपनी पसंद की लाई हुई मिठाई के बदले में उनका मान रखना,
क्योंकि बड़े हैं,
और मीठा तो ख़ैर,
मीठा ही होता है.
वो पूछते रहेंगे कॉलेज के दौरान अब आगे क्या?
जवाब में हॅंसकर कह देना जो तुम बनना चाहती हो.
वो हॅंसेंगे तुम्हारे शौक पे,
वो हॅंसेंगे तुम्हारी पढ़ाई पे,
तुम्हारी भाषा पे – क्योंकि जब तुम शुद्ध हिंदी या मराठी बोलती हो ना,
कहर ढाती हो.
उन्हें क्या पता मन ही मन तुम अपनी संस्कृति, अपनी भाषा सहेजना चाहती हो?
उन्हें करने देना सवाल की क्यों तुम फलानी नौकरी छोड़ के इस ‘फालतू सी’ जगह बैठी हो.
उन्हें उड़ाने देना मज़ाक तुम्हारे सपनों का,
कहने देना कि नौकरी ना भी करी तो क्या फ़र्क पड़ता है?
उन्हें कहने देना कि नौकरी करना तो आखिर तुम्हारे लिए लाईफस्टाईल चॉइस है,
कि बनी तो तुम चकला-बेलन ही के लिए हो.
उन्हें हॅंसने देना तुमपे, तुम्हारे परिवार पे.
पर तुम कभी पलटकर उनसे सवाल ना करना.
कभी ना पूछना कि उन्होंने क्या किया, क्या नहीं किया.
कुछ किया तो क्यों किया और कुछ ना किया तो क्यों ना किया.
जहाँ मन किया नौकरी की, जब मन किया छोड़ कर करियर लाईन ही बदल दी.
पर बस, जब उनकी बेटी सयानी हो जाएगी,
अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी,
तुम ‘बधाई हो’ ही कहना
और दुआओं से ज़्यादा कुछ ना देना.
उसकी हर मुमकिन मदद करना,
क्योंकि सपने देखना तो उसने बस अभी शुरू ही किया है.